काव्य रचूँ ऐसा मधुर, जो जग को हर्षाय।। काव्य रचूँ ऐसा मधुर, जो जग को हर्षाय।।
लोभ मोह जो त्याग दे, वो साधक बन जाय।। लोभ मोह जो त्याग दे, वो साधक बन जाय।।
होली के सब पे चढ़े, मधुर सुहाने रंग। पिचकारी चलती कहीं, बाजे कहीं मृदंग।। होली के सब पे चढ़े, मधुर सुहाने रंग। पिचकारी चलती कहीं, बाजे कहीं मृदंग।।
तब जाकर हम जी सके, प्रिये तुम्हारे बाद। तब जाकर हम जी सके, प्रिये तुम्हारे बाद।
दोहा दोहा
जिसके मुख से मैं निकलूं, उसके मुख की वाणी हूं। जिसके मुख से मैं निकलूं, उसके मुख की वाणी हूं।